ख्वाहिशों की मौत-12
उठो बाबू जी उठो, इसके आगे गाड़ी नहीं जाती........ जोधपुर स्टेशन आ गया। कहां जाना था तुमको???? सब तो उतर चुके हैं। रात सोचते हुए ना जाने कब दिनेश की आंखें लग गई, पता ही ना चला। इतना जरुर पता कि नीचे सीट पर बैठा हुआ बुड़ा आदमी एक बार उसे चादर ओढ़ने को कह कर सो गया था।
शारीरिक और मानसिक तौर से टूटा हुआ दिनेश कब सो गया, पता ही ना चला। उसने आंखे खोली तो देखा जोधपुर स्टेशन आ गया। हड़बड़ाहट में आकर उसने सामान समेटा और फिर था ही क्या उसके पास ...... एक बैग और दो जोड़ी कपड़े बस इतना ही तो था। तेजी से उठकर नीचे उतरा और इस तरह से बस की ओर भागा जैसे वह अगले ही पल घर पहुंच जाएगा। लेकिन सफर तो अभी बहुत बाकी था। वह तेजी से दौड़ कर बस में जाकर बैठ गया । कंडक्टर को ₹10 हाथ में देकर बोला कि मुझे जल्दी से छोड़ दो, कंडक्टर ने उसकी तरफ देखा और बोला.... जल्दी में हो क्या??????
गलत बस में चढ़ गए। वह सामने खड़ी बस जल्दी पहुंचा देगी। दिनेश तुरंत वापस पैसा लिया और दूसरी बस में चढ़ गया। अभी तीन महीने पहले ही तो आया था वह, फिर भी उसे ठीक से याद ना रहा। लगता जैसे वह अपने ही शहर में परदेसी सा हो गया। दूसरे बस में जैसे-तैसे सीट पकड़ कर बैठा ही था कि पीछे से आवाज आई थी ने बहुत देर कर दी बेटा........... मैं भी उधर ही जा रहा हूं। भाई साहब की अभी खबर मिली। अब तो शायद अंतिम क्रिया भी हो चुकी होगी। हाय रे दुर्भाग्य अंतिम दर्शन भी ना कर पाया। लेकिन वह तो तुम्हारे घर गए थे ना उड़ीसा..... वापस कब आ गए वहां से?????
तबीयत खराब थी उनकी....... दिनेश से रहा नहीं गया, बोला कोतवाल चाचा अभी कुछ दिन पहले ही आए थे। प्रीति और बच्चों को साथ लेकर ऐसा कुछ तो बताया नहीं उन्होंने, या हो सकता है मैं ही ध्यान नहीं रख पाया। कहते हुए दिनेश की आंखों में आंसू आ गए। कोतवाल चाचा उसे बचपन से जानते थे, उसे चुप कराते हुए मत रो बेटा.... सब को एक न एक दिन जाना है। यहां भी जिंदगी की कोई खबर नहीं है। बोलते हुए उन्होंने लंबी श्वास भरी और दिनेश को शांत कराने की कोशिश करने लगे।
दिनेश सोच में डूबा था और खुद से ही प्रश्न कर रहा था ,कि आखिर वह क्यों नहीं समझ पाया??? यदि उसके पिता बीमार थे तो उन्होंने क्यों नहीं बताया????फिर ऐसी भी क्या नौकरी जो अपने ही परिवार को समय ना दे सके। किस काम में वह जीवन को जो जन्म देने वाले माता - पिता के काम ही ना आ सका। उसे याद आया जब वह अपने पिता को संबलपुर स्टेशन (उड़ीसा) पर छोड़ने आया था। तब पिता की आंखें नम थी। सिर्फ आते समय उन्होंने इतना ही कहा, थोड़ा अपना भी ख्याल रखा करो बेटा दिनेश..... और कभी कबार मिलने गांव भी आ जाया करो। चौधरी तुम्हें बहुत याद करता है, समझ नहीं आता, कैसी नौकरी है तुम्हारी....और भी लोग हैं गांव में, सभी दो- तीन दफा आ ही जाते हैं और तुम्हें है कि वक्त ही नहीं मिलता।
डर है कि कहीं ऐसा ना हो जब तक तुम पहुंचो, बहुत देर हो जाए। उस समय दिनेश इस बात का मतलब क्यों नहीं समझा????? और क्यों नहीं अपने पिता को रोक लिया??? यदि रोक लेता तो क्या पिता आज उसके साथ होते?? क्या वह वाकई दोषी है???? लेकिन अफसोस अब कोई लाभ नहीं। इस जगत में काल को भला कौन टाल पाया है। वह जो ऐसे विचार करता है। सोच कर अपने आप को बहलाता है.. और ना चाहते हुए भी अपनी आंखों से निकलने वाले आंसू को ऐसे पोछ रहा था जैसे समुद्र किनारे बैठ कर कोई लहरों को हटाने की कोशिश करता...लेकिन अफसोस.....
क्रमशः .....
Rupesh Kumar
19-Dec-2023 09:21 PM
V nice
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Gunjan Kamal
19-Dec-2023 08:29 PM
👏👌
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Shnaya
19-Dec-2023 11:15 AM
Nice one
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